AEL FPO को लोगों ने नकारा
फिर क्या था। झंझावात से जूझ रहे गौतम अडानी ने आलोचकों के मुंह पर ताला लगाने का फैसला लिया। हिंडनबर्ग को भेजा 413 पन्नों का जवाब माकूल साबित नहीं हुआ। इसलिए अडानी ने मार्केट से एफपीओ ही वापस लेने का फैसला कर लिया। गौतम अडानी ने उन निवेशकों को शुक्रिया कहा है जिन्होंने कंपनी में भरोसा जताते हुए एफपीओ में पैसा लगाया। लेकिन सच्चाई ये है कि भारत का सबसे बड़ा एफपीओ सिर्फ 112 परसेंट सब्सक्राइब हुआ। वो भीअबू धाबी वाली एक कंपनी के सहयोग से। रिटेल मतलब हमारे आपके जैसे खुदरा निवेशकों ने इससे तौबा ही किया। रिटेल कैटेगरी में सिर्फ 12 परसेंट कोटा ही सब्सक्राइब हुआ है। मतलब साफ है कि शेयरधारकों का मजबूत आधार बनाने की मुहिम फेल हो गई।
सच्चाई ये है कि भारत का सबसे बड़ा एफपीओ सिर्फ 112 परसेंट सब्सक्राइब हुआ। वो भीअबू धाबी वाली एक कंपनी के सहयोग से। रिटेल मतलब हमारे आपके जैसे खुदरा निवेशकों ने इससे तौबा ही किया। रिटेल कैटेगरी में सिर्फ 12 परसेंट कोटा ही सब्सक्राइब हुआ है। मतलब साफ है कि शेयरधारकों का मजबूत आधार बनाने की मुहिम फेल हो गई।
आलोक कुमार
इसीलिए अडानी ने एफपीओ वापस लेने का फैसला कर माकूल जवाब देने की कोशिश की है। कंपनी ने कहा है कि उसकी जो भी जरूरत है वो मौजूदा पैसे से पूरी हो जाएगी। निवेशकों का भरोसा सबसे अहम है। हाल के हफ्तों में कंपनी के शेयरों में काफी उठापटक हुई है। ऐसे में हम सभी सब्सक्राइबर्स का पैसा लौटा देंगे। अब आप ये समझिए की आखिर एफपीओ जारी ही क्यों हुआ था। कोई भी कंपनी अपने भविष्य के विस्तार के लिए या कर्जा चुकाने के लिए एफपीओ लाती है। ये एक मौका होता है कि मौजूदा शेयरधारकों के लिए भी। उस कंपनी से निकलने का। वो चाहें तो एफपीओ के रेट पर अपना शेयर बेच भी सकते हैं क्योंकि मार्केट का रेट भी उसके आस-पास आ जाता है। पर ऐसा हुआ नहीं। एफपीओ के दौरान कंपनी के रिटेल शेयर का भाव रसातल में चला गया है। अडानी ने चौंकाने वाला फैसला कर इसे गिरावट को रोकने की कोशिश की है। अब उनके शेयरधारक इस पर कितना भरोसा करते हैं ये बाजार तय करेगा।